दूधेश्वरनाथ मंदिर | Dudeshwar Nath Temple:- गाजियाबाद में प्रेम नगर, माधुपुरा क्षेत्र में प्राचीन दूधेश्वनाथ मंदिर स्थापित है। भगवान शिव जी के इस मंदिर के सम्बन्ध में मान्यता है कि यह मंदिर लंकापति रावण के पिता श्री विश्रवा जी व लंकापति रावण से सम्बन्धित है क्योंकि ऋषि विश्रवा ने यहां कठोर तप किया था तथा लंकापति रावण यहां पूजा-अर्चना किया करते थे।
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पुराणिक मान्यता के अनुसार
पुराणों के अनुसार मान्यता है कि लंकापति रावण के पिता ऋषि विश्रवा जी ने हरनंदी (हिरण्यदा) नदी के समीप बैठकर घोर तप किया था तथा लंकापति रावण भी वहां स्थित शिवलिंग की पूजा अर्चना किया करते थे वर्तमान में यह नदी हिण्डन के नाम से जानी जाती है तथा यह हिरण्यगर्भ स्वयंभू शिवलिंग ही आज श्री दूधेश्वनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह दिव्य शिवलिंग जमीन से लगभग 3 फुट से अधिक नीचे है।
दूधेश्वरनाथ नाम क्यों पड़ा?
मान्यता है कि गाजियाबाद में ही स्थित एक गांव जिसका नाम कैला है कि गायें यहाँ पर चरने आती थी तथा यहां पर स्थित एक टीले के पास आते ही उनके थन से स्वत: ही दूध निकलकर टीले पर गिरने लगता था। शुरू में तो इस बात का किसी को भी नहीं पता था परन्तु जब गाय का स्वामी गायों का दूध निकलने जाता था तब उनमें से कुछ गायों का दूध नहीं निकलता था।
कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा फिर एक दिन उसने गाय का पीछा करने का सोचा तब वह देखकर हैरान हो गया कि एक टीले के समीप आते ही गाय का दूध अपने आप ही थनों से निकलकर टीले पर गिरता था धीरे-धीरे यह बात पूरे गांव में आग की तरह फैल गई अब गांव वालों ने इस टीले की खुदाई करने का निश्चय किया। जब गांव वालों ने खुदाई शुरू की तो उनका यहां पर एक शिवलिंग मिला। इस शिवलिंग के मिलने के बाद यहां पर मंदिर की स्थापना की गई और इसलिये आज यहीं मंदिर श्री दूधेश्वरनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध व लोकप्रिय है। इस मंदिर में धूना जलता है जिसके संबंध में मान्यता है कि कलयुग में भगवान शिव के प्रकट होने के समय से ही यह धूना जलता आ रहा है।
दोस्तों गाजियाबाद में प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के पावन पर्व पर लाखों श्रृद्धालु कावड़ लाकर यहां भगवान शिव को कावड़ में लाया गया जल अर्पण करते हैं। इस मंदिर में आये सभी भक्तों की भगवान शिव मुराद पूरी करते हैं।
जय हो भगवान दूधेश्वरनाथ की
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