- February 7, 2021 ( 3 weeks ago )
- admin_topicinhindi
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दोस्तों मैं एक गरीब परिवार से हूूं इसलिये मैं समझता हूं कि हर बच्चा UPPSC का कोर्स नहीं खरीद सकता है मैने बहुत तरह से पैसे जमा करके अपने लिये यह कोर्स खरीदा है इसलिये अब मै इस कोर्स में बताये गये सभी महत्वपूर्ण प्रश्न प्रतिदिन इस बैवसाईट पर डालूंगा ताकि मेरे बहुत से दोस्त इसका लाभ उठा सके। कृपया इसका लाभ उठाये।
चलिये ईश्वर का नाम लेकर शुरू करते हैं।
Modern History important Question for UPPSC exam
1- यरोपीय व्यापारियों का आगमन।
भारत और यूरोप के बीच सम्बन्ध- प्राचीन काल में यूनानी आक्रमण के बाद ही भारत और यूरोप के बीच सम्बन्ध आरम्भ हो गये थे। मध्यकाल में भारत यूरोप व्यापार कई मार्गों से होता था।
पहला मार्ग फारस की खाड़ी तक समुद्री और उसके आगे ईराक और तुर्की होकर स्थल से
दूसरा मार्ग लाल सागर होकर मिस्र होते हुए यह मार्ग बहुत अधिक प्रचलित नहीं था क्योंकि इस मार्ग पर समुद्री डाकुओं का खतरा रहता था।
तीसरा मार्ग उत्तर पश्चिमी सीमा के दर्रे- गोमल, बोनल, खैबर के माध्यम से।
1453 में कुशतुनतुनिया उसमानी तुर्को का अधिपतिय हो गया तदोपरान्त व्यापार को निरन्तर बनाये रखने हेतु बार्थों लोम्यू डियाज ने 1487 को एक नया मार्ग ढूंढा लिया कैप ऑफ गुड हॉप- आशा अंतरिप (मतलब स्थल को वह हिस्सा जो समुद्र के अन्दर चलाया गया हो) का पता लगाया जिससे व्यापार निरन्तर हो गया। यही वह रास्ता है जिससे होते हुए वास्कोडिगामा पहली बार भारत आया था इसलिये बास्कोडिगामा को यरोप से भारत आने वाले नये रास्ते की खोज का जनक कहा जाता है यहां यह कहता गलत है कि बास्कोडिगामा ने भारत की खोज की क्योंकि उसने केवल भारत आने वाले नये रास्ते की खोज की थी।
इस आशा अतंरिप के माध्यम से ही बहुत सी कम्पन्नियां भारत आई जिनका क्रम निम्न प्रकार है-
सबसे पहलेे जानते है कि यह बनी कब।
1- पुर्तगाली कम्पनी ईस्तादों दा इंडिया जिसकी स्थापना 1498 में हुई।
2- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी 1600 में।
3- डच कम्पनी 1602 में।
4- डेनिस ईस्ट इंडिया कम्पनी 1602 में।
5- फ्रेंच कम्पनी कम्पनी दा इन्तेस ओरंदियास 1664
6- स्वीडिश ईस्ट इंडिया कम्पनी 1731।
सभी कम्पनी ब्रिटेन में बनी इनका एकमात्र उदेश्य यूरोप के ईस्ट में आकर व्यापार करना था।
इन कम्पनियों के आने का क्रम
पुर्तगाली
डच
अंग्रेज
डेनिस
फ्रांसिसी
इनका उदेश्य मसाले का व्यापार करना था उस समय काली मिर्च को काला सोना ब्लैक गोल्ड कहा जाता है साथ ही आपको बता दे कि वास्कोडिगामा यहां से जो मसाला लेकर गया तो उसने उसपर 60 गुना लाभ कमाया।
पुर्तगाल- मई 1498 में वास्कोडिगामा एक गुजराती व्यापारी अब्दुल माजिद की सहायकता से कालीकट के तट पर कप्पक डाबू स्थान पर उतरा। वहां के शासक जिसकी पैत्रक उपाधि जैमोरियन थी ने उसका स्वागत किया। जबकि अरब व्यापारियों तथा कोरो मण्डल तट के चटियार समुदाय और चुलिया मुसलमानों ने उसका विरूद्ध किया।
वास्कोडिगामा कि इस व्यापारिक यात्रा में हुये कुल खर्च वस्तु (मसाला और काली मिर्च) की लागत खर्च की तुलना में 60 गुना ज्यादा लाभ स्वदेश लौटने पर हुआ इससे अन्य व्यापारियों को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।
1500- पड्रो अल्बारेज कैब्राल- 1500 में 13 जहाजाें के बेडे का नायक बनकर यह कालीकट आया इसके साथ वार्थो लोम्यों डियाज भी आया था कैब्राल ने 1500 ई0डी0 में पहली बार कालीकट में एक फैक्ट्री, कारखाना, कोठी सबका मतलब एक ही है (व्यापारिक केन्द्र) बनाया। तथा एक अरबी जहाज को पकड़कर जैमोरिन को उपहार स्वरूप भेंट किया।
पुर्तगालियों का भारत में प्रारम्भिक लक्ष्य मसाला व्यापार में एकाधिकार करना था।
किन्तु कैब्राल के अभियानों के बाद पुर्तगाल ने पूर्वी जगत और यूरोप के मध्य होने वाले सम्पूर्ण व्यापार पर एकाधिकार करने का निश्चय किया।
1502- वास्कोडिगामा का पुन: भारत आगमन- 1502 में वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत आया।
1503- में अल्बुकर्क एक छोटे जहाजी बेडे का नायक बन भारत आया उसने कोचिन को पुर्तगालियों का व्यापारिक केन्द्र बनाया। इसको ही भारत में पुर्तगाली शक्ति का नींव डालने वाला माना गया है।
1505- फ्रांस्सिकों डि अल्मेडा- (1505- 1509)- 1505 में फ्रांस्सिकों डि अल्मेडा भारत आया यह प्रथम पुर्तगाली गर्वनर था। इसने ही ब्लू वाटर पोलिसी अपनाई (शांति जल नीति)। और समुद्री व्यापार पर अपना एकाधिकारी स्थापित करने का प्रयास किया उसने कोचिन, बेसिन, किवा आदि में किलों का निर्माण करवाया। अल्मेडा ने मिस्र, तुर्की , गुजरात (महमूद बेगडा) की संयुक्त शक्ति के खिलाफ संघर्ष किया। 1508 में चोल का युद्ध हुआ तथा अल्मेडा पराजित हुआ उसका पुत्र अलमायदा मरा गया किन्तु अगले ही वर्ष अल्मेडा ने तीनों को पराजित कर होरमुज जल संधि पर अधिकार कर लिया। होरमुज फारस की खाडी को ओमान की खाडी से जोडने का काम करती है।
1509-1515 अलफान्सु दा अल्बुकर्क- अल्बुकर्क पुर्तगालियों का दूसरा गर्वनर बना। इसने भारत में क्षेत्रीय विजय की नीति अर्थात सम्राज्यवादी नीति का आरम्भ किया। इसने 1510 में वीजापुर के आदिलशाही सुल्तान से गोवा जीत लिया। उसने स्थानीय स्त्रियों से विवाह करने पर जोर देकर सांस्कृतिक स्तर पर साम्राज्य वाद को आधार देने की नीति अपनायी तथा मुस्लिमों के प्रति अत्यन्त वैमनस्यपूर्ण मतलब कटूतापूर्ण नीति अपनाई। अल्बुकर्क ने पुर्तगाली क्षेत्रों में सतीप्रथा में पाबन्दी लगा दी। अल्बुकर्क के विजय नगर के शासक कृष्ण देव राय से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे इसने मल्लका (1511 में) जलसंधि आदि पर विजय प्राप्त की 1515 में इसकी मृत्यु गोवा में हो गई। वहीं इसे दफना दिया गया।
नीनो डि कुनहा- 1529-38 – 1530 में कोचिन के बदले गोवा को पुर्तगालियों का मुख्यालय बनाया। इसके काल में पुर्तगालियों ने सत गांव, हुगली, चटगांव, दियुब, बेसिन, क्रेगानौर आदि क्षत्रों में विजयी प्राप्त हुई।
गुजरात के शासक बहादुरशाह के साथ इसके सम्बन्धों में बांटा जा सकता है।
प्रथम चरण- प्रथम चरण में बहादुरशाह ने तुर्को से मदद मांगी। तुर्की से सुलेमान रईस की अध्यक्षता में जहाजी बेडा